नित्यकर्म से गृहस्थ को मिलती है तीन ऋणों से मुक्ति
नित्यकर्म से गृहस्थ को मिलती है तीन ऋणों से मुक्ति
सनातन धर्म में जन्म लेने वाले मनुष्य पर संसार में आते ही तीन ऋण चढ़ जाते हैं
ये तीन ऋण हैं
1. देव ऋण 2. ऋषि ऋण 3. पितृ ऋण
शास्त्रविधि के अनुसार गृहस्थ के नित्यकर्म उसे इन तीनों ऋणों से मुक्त करता है। गृहस्थ के नित्यकर्म का फल कथन इस प्रकार है-
यत्कृत्वानृण्यमाप्नोति दैवात् पैत्रयाच्च मानुषात्।।
आइए जानते हैं कि नित्यक्रम में क्या-क्या विधि शामिल हैं। नित्यकर्म में शारीरिक शुद्धि, संध्यावंदन, तर्पण और देव-पूजन आदि शामिल हैं। शास्त्र में छह कर्म बताए गए हैं और इन्हें प्रतिदिन करना चाहिए।
1. स्नान 2. संध्या 3.जप 4.देव-पूजन 5.बलिवैश्वदेव 6.अतिथि सत्कार
सन्धया स्नानं जपश्चैव देवतानां च पूजनम्।
वैश्वदेवं तथातिथ्यं षट् कर्माणि दिने दिने।।
मनुष्य नित्य इन छह कर्मों का पालन करता है, तो उसे अन्य चीजों की ओर भटकने की जरूरत नहीं है। इन छह कर्मों के पालन से मनुष्य तीनों प्रकार के ऋण से मुक्त हो जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि देव ऋण को भगवान विष्णु से संबंधित माना गया है। ऋषि ऋण भगवान शिव और गुरु से संबंधित है। तीसरा और अंतिम ऋण पितृ ऋण है, ये ऋण व्यक्ति के पूर्वजों से संबंधित है।
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