शास्त्रों के अनुसार ऐसी होनी चाहिए आपके दिन की शुरुआत, ये है विधान

प्रातः जागरण से स्नान पूर्व के कर्म

इन मंत्रों के साथ दिनचर्या की करिए शुरुआत


शास्त्रों में विधि-विधान पूर्वक बताया गया है कि मनुष्य को सुबह किस समय उठना चाहिए। कैसे अपनी दिनचर्या शुरू करनी चाहिए। किन मंत्रों के साथ दैनिक कार्यों का निष्पादन करना चाहिए। इस पोस्ट में हम आपको सुबह उठने से लेकर स्नान से पूर्व तक के कर्मों के बारे में बताएंगे। साथ इन कर्मों को करते समय किन मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए, इसकी जानकारी भी आपको मिलेगी। 


ब्रह्म मुहूर्त में जगने का प्रावधान- शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य को सूर्योदय से लगभग डेढ़ घंटे पूर्व उठ जाना चाहिए। इस बेला को ब्रह्म मुहूर्त भी कहा जाता है। कहा गया है कि ब्रह्म मुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करती है। कहा गया है कि ब्रह्म मुहूर्त में जो शयन करता है उसे पादकृच्छ् नामक व्रत करके प्रायश्चित करना पड़ता है। 
ब्राह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी।
तां करोति द्विजो मोहात् पादकृच्छे्ण शुद्धयति।।

करावलोकन- सुबह उठते ही दोनों हथेलियों को देखते हुए निम्नलिखित श्लोक का पाठ करना चाहिए।

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती। 
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्।।

कहा गया है कि हाथ के आगे के भाग में देवी लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती और मूल भाग में ब्रह्मा जी निवास करते हैं। अतः सुबह उठकर दोनों हाथों का अवलोकन अवश्य करना चाहिए। 

भूमि वंदना- बिस्तर से उठकर पृथ्वी पर पैर रखने से पहले पृथ्वी माता का अभिवादन करना चाहिए और उनपर पैर रखने से पूर्व निम्नलिखित श्लोक का पाठ करना चाहिए।

समुद्रवसने देवी पर्वतस्तनमंडिते।
विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे।।
समुद्ररूपी वस्त्रों को धारण करने वाली पर्वत रूप स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी पृथ्वी देवी, आप मेरे पाद स्पर्श को क्षमा करें। 

मंगल दर्शन- इसके बाद गोरोचन, चंदन, दर्पण, शंख आदि मांगलिक वस्तुओं का दर्शन करना चाहिए। तत्पश्चात गुरु, अग्नि और सूर्य को नमस्कार करना चाहिए। 

मानसिक शुद्धि- पैर, हाथ, मुख धोकर कुल्ला करना चाहिए। आचमन करना चाहिए और निम्नलिखित श्लोकों का उच्चारण करते हुए सभी अंगों पर जल छिड़कना चाहिए। ऐसा करने से मानसिक स्नान हो जाता है। 

ऊं अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। 
यः स्मरेत् पुंडरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
अतिनीलघनश्यामं नलिनायतलोचनम्।
स्मरामि पुंडरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम्।।

इसके बाद भगवान, माता-पिता एवं गुरुजनों का अभिवादन करना चाहिए। परमात्मा का ध्यान करना चाहिए। 

त्रैलोक्यचैतन्यमयादिदेव श्रीनाथ विष्णो भवदाज्ञयैव।
प्रातः समुत्थाय तव प्रियार्थं संसारयात्रामनुवर्तयिष्ये।।
सुप्तः प्रबोधितो विष्णो ह्रषीकेशेन यत् त्वया।
यद्यत् कारयसे कार्यं तत् करोमि त्वदाज्ञया।।

यहां ये बतलाया गया है कि हे प्रभुे यह भी आपकी आज्ञा है कि मैं कर्म करने के साथ-साथ आपका स्मरण करता रहूं। कर्म करते हुए यथासंभव आपका स्मरण करता रहूंगा। इस कर्मरूप पूजा से प्रसन्न से आप प्रसन्न हों। इस श्लोक का पाठ करने के बाद मनुष्य को अपना दैनिक कर्म शुरू करना चाहिए। 

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